(विवेक मिश्र)रोहतक में प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान पीजीआई में लॉकडाउन लागू होने से पहले इमरजेंसी विभाग, ट्रामा सेंटर, डेंटल काॅलेज, न्यू ओपीडी में जहां मरीजों की लंबी कतार लगती थीं। लेकिन इन दिनों संस्थान के इनमें से अधिकतर हिस्सों में सन्नाटा पसरा है। न्यू ओपीडी में सामान्य दिनों में प्रदेश भर से औसतन आठ हजार मरीजों की ओपीडी होती थी। कोरोना वायरस फैलने से बचाव के लिए ओपीडी रद्द कर दी गई। अब सिर्फ फ्लू क्लीनिक का संचालन हो रहा है। पीजीआई के सुरक्षा कर्मी यहां पर आने वाले हर मरीज को संक्रमण मुक्त रहने के लिए सोशल डिस्पेंसिंग बनाए रखने और दिन भर में आठ से 10 बार दोनों हाथों को सेनिटाइज करने की अपील करने के साथ ओपीडी में प्रवेश देते हैं। पं. बीड़ी शर्मा हेल्थ यूनिवर्सिटी के डॉ. ओपी कालरा ने बताया कि पीजीआई मेडिकल कॉलेज में कोरोना वायरस से बचाव की तैयारियां तेजी से चल रही हैं।
मंत्रियों तक आती थी सिफारिश, अब ट्राॅमा सेंटर के बेड खाली
अपेक्स ट्रॉमा सेंटर मैनेजमेंट के अधिकारी बताते हैं कि लॉकडाउन लागू होने से पहले ट्रॉमा सेंटर के तीसरी मंजिल पर बने वार्ड के 46 बेड हमेशा मरीजों से फुल रहते थे। यहां पर मरीज को बेड उपलब्ध कराने के लिए चंडीगढ़ से सरकार के मंत्रियों व अन्य प्रभावशाली लोगों की सिफारिश आया करती थी। लेकिन अब लॉकडाउन पीरियड में 46 में से औसतन 40 बेड खाली हैं। इन पर मरीज भर्ती करने के लिए नहीं मिल रहे हैं। प्रभावशाली लोगों की सिफारिश आना भी बंद हो गई है। बता दें, कि तीसरी मंजिल पर बने वार्ड में 46 में तीन बेड पर मॉनिटर की इत्यादि की सुविधा है।
फ्लू क्लीनिक
न्यू ओपीडी ब्लॉक में सर्दी, खांसी, जुकाम, बुखार, गले में दर्द, सांस लेने में दिक्कत सहित अन्य कई फ्लू संबंधी रोगों की समस्याएं लेकर रोजाना 130 से 150 मरीज ओपीडी में आ रहे हैं। फ्लू क्लीनिक में 11 दिन में औसतन 1650 मरीजों का चेकअप हो चुका है।
डेंटल कॉलेज
फरवरी माह के आंकड़े बताते हैं कि दांतों के रोगों से परेशान रोजाना आठ सौ से एक हजार मरीज ओपीडी में इलाज कराने के लिए आते थे। लॉकडाउन में ओपीडी बंद होने के बाद अब सिर्फ इमरजेंसी केस के 15 से 20 मरीज ही आ रहे हैं।
इमरजेंसी विभाग
22 फरवरी से पांच मार्च तक 2257 मरीज भर्ती हुए। 22 मार्च तक 5 अप्रैल 2020 तक 960 मरीज ही भर्ती हुए। यहां पर रोजाना औसतन 600 मरीज आया करते थे। यहां पर रोजाना औसतन 650 कार्ड बनते थे, जो अब महज 325 मरीजों के ही कार्ड बनाए जाते हैं।
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